कौशाम्बी –:सरकारी भवन अक्सर बजट के मोहताज होते हैं, और थाने—तब तक सुधारे नहीं जाते जब तक कोई “ऊपर से हुक्म” न आए। लेकिन इस बार हुक्म ऊपर से नहीं आया, बल्कि संकल्प नीचे से उठा—सीधे दरोगा की मिट्टी से। थानाध्यक्ष पिपरी सिद्धार्थ सिंह ने न किसी आदेश की प्रतीक्षा की, न ज्यादा अनुदान की माँग की। उन्होंने जिस जर्जर थाने को देखा, वहाँ से उनका आत्मसम्मान आहत हुआ। बोले—”जहाँ जनता न्याय की आस लेकर आती है, वहाँ खुद दीवारें गिर रही हों, तो व्यवस्था का क्या मोल रहेगा?”
एक दरोगा की सोच ने बदली तस्वीर — सिद्धार्थ सिंह की सादगी में छिपा था बदलाव का बीज, पिपरी थाने…