एक दरोगा की सोच ने बदली तस्वीर — सिद्धार्थ सिंह की सादगी में छिपा था बदलाव का बीज, पिपरी थाने के पुनर्जागरण की कहानी, जहां दरोगा की मेहनत ने खंडहर को कर्मभूमि बना दिया
कौशाम्बी –:सरकारी भवन अक्सर बजट के मोहताज होते हैं, और थाने—तब तक सुधारे नहीं जाते जब तक कोई “ऊपर से हुक्म” न आए। लेकिन इस बार हुक्म ऊपर से नहीं आया, बल्कि संकल्प नीचे से उठा—सीधे दरोगा की मिट्टी से। थानाध्यक्ष पिपरी सिद्धार्थ सिंह ने न किसी आदेश की प्रतीक्षा की, न ज्यादा अनुदान की माँग की। उन्होंने जिस जर्जर थाने को देखा, वहाँ से उनका आत्मसम्मान आहत हुआ। बोले—”जहाँ जनता न्याय की आस लेकर आती है, वहाँ खुद दीवारें गिर रही हों, तो व्यवस्था का क्या मोल रहेगा?”
फिर उन्होंने किया… जो कोई दरोगा करने की सोचता भी नहीं
सिद्धार्थ सिंह ने अपनी निगरानी में हर ईंट रखवाई, हर दीवार में कर्तव्य का रंग चढ़ाया, और हर कोने को भरोसे की जगह में बदला। ना प्रेस नोट, ना प्रचार। बस लगातार मेहनत।
तभी एक सच्चा अफसर साथ आया—सीओ चायल सत्येंद्र तिवारी सीओ चायल सत्येंद्र प्रसाद तिवारी ने जब यह देखा कि एक दरोगा अपना थाना अपने खून-पसीने से गढ़ रहा है, तो उन्होंने सिद्धार्थ की राह को सिर्फ़ प्रशंसा नहीं दी—बल्कि प्रशासनिक आधार भी दिया। फंड मिले, संसाधन जुटे, पर सबका केंद्र रहा—सिद्धार्थ सिंह की संकल्पशक्ति।