तृतीय दिवस की कथा महाराज जी ने जन्मोत्सव की बधाई के

मंडल ब्यूरो अनिल विश्वकर्मा

तृतीय दिवस की कथा महाराज जी ने जन्मोत्सव की बधाई के साथ प्रारंभ किया महाराज जी ने बताया जब भगवान प्रगट हुए तो देवता भी आकाश मार्ग से पुष्प की वर्षा करने लगे और अयोध्या के नागरिक भगवान के दर्शन के लिए दौड़ पड़े इसी प्रसंग के अंतर्गत महाराज जी ने अयोध्या वासियों का उदाहरण देकर भगवान के दर्शन की आचार संहिता बताई की जो जैसैई तैसेइ उठि धावा। भगवान को प्राप्त करने के लिए किसी भी प्रकार की बनावट दिखावट की आवश्यकता नहीं है आप जैसे हो उसी प्रकार से बस परमात्मा को पाने के लिए दौड़ जाओ और भजन में भक्ति में परमार्थ में स्वार्थी होना ही पड़ता है और जो जितना भजन में स्वार्थी हो जाता है संसार के व्यवहार में परमार्थी हो जाता है महाराज जी ने भगवान के बाल लीलाओं का श्रवण कराते हुए उनके रूप दर्शन का वर्णन किया भगवान का रूप सर्वांग मधुर ही मधुर है। वल्लभाचार्य जी के मधुराष्टकं से महाराज जी ने भगवान के रूप सौंदर्य का वर्णन किया नामकरण संस्कार की चर्चा करते हुए महाराज श्री ने कहा कि नाम संतों से शास्त्रों से बड़े बुजुर्गों से विद्वानों से पूछ कर ही रखना चाहिए क्योंकि हमारे यहां पुरानी कहावत है यथा नाम तथा गुणः नाम से ही पालक में किस प्रकार के गुणों का निर्माण होने लगता है इसीलिए वशिष्ठ जी ने चारों भाइयों का नामकरण विशेष प्रकार से किया महाराज जी ने भारत के प्राचीन महान वैदिक गुरुकुल शिक्षा परंपरा के ऊपर भी प्रकाश डाला कि भगवान चारों भाइयों के सहित गुरुकुल में पढ़ने गए इसलिए आज भी वह गुरुकुल वैदिक परंपरा प्रासंगिक है क्योंकि आज हम शिक्षित तो बना पा रहे हैं समझदार नहीं बना पा रहे हैं शिक्षा और समझदारी में अंतर है और नए भारत का निर्माण यदि करना है शिक्षा के साथ-साथ संस्कार की भी अत्यंत आवश्यकता है हम आने वाली पीढ़ियों को पैसे कमाने की मशीन बना रहे हैं और ऐसे बालक कभी भी अपने माता पिता परिवार समाज राष्ट्र महत्व नहीं समझते अतः भारत को यदि पुनः स्थापित करना है इन छोटी-छोटी बातों पर विशेष ध्यान

देना चाहिए विश्वामित्र यज्ञ रक्षा के प्रसंग में महाराज जी ने बताया कि भगवान विश्वामित्र जी के साथ जाकर उनके यज्ञ की रक्षा करते हैं अर्थात जिस को भी अपने जीवन रूपी यज्ञ कि यदि की रक्षा करना है उसको राम और लक्ष्मण अवश्य साथ रखने होंगे राम यानी सत्य लक्ष्मण यानी वैराग्य त्याग समर्पण तो जीवन में सत्य की सुगंध भी आनी चाहिए वैराग्य समर्पण भी बनना चाहिए भगवान ने मां अहिल्या का उद्धार किया है अहिल्या प्रसंग के मार्ग में को समझाते हुए महाराज जी ने कहा जीवन में जब भी कोई पाप हो जाए पाप को छुपाना नहीं चाहिए पाप छुपाने से भारी होता है आपको किसी ना किसी गुरु संत सम्मुख प्रकट करना चाहिए तो आप की रक्षा हो जाएगी अहिल्या जी का उद्धार कर भगवान गंगा जी की महिमा गुरुदेव विश्वामित्र जी के मुख से सुनते हैं महाराज जी ने कहा कि गंगा गीता गौरी गायत्री यह भारत के प्राण की रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *