इतिहास पर एक नजर (किताबों के गलियारे से) लाहौर की फिजाओं में अब भी बसते हैं सरदार भगत सिंह

 

रिपोर्ट एस कुमार

व्यक्ति को मारा जा सकता है लेकिन उसके विचारों को नहीं। भगत सिंह द्वारा जेल से अपने भाई को लिखी आखिरी चिट्‌ठी की ये लाइनें आज भी युवा पीढ़ी को प्रेरित करती हैं। साल 1907 में पाकिस्तान के पंजाब के लयालपुर जिले की तहसील जरनवाला के बंगा चक 105 जी में पैदा हुए भगत सिंह आज भी दोनो देशों के हीरो है। इस सूबे में आज भी बच्चे उनकी कहानियां सुनकर बड़े होते हैं। लाहौर में उनसे जुड़ी जगहों पर आज भी उन्हे याद किया जाता है।

 

वहां मौजूद भगत सिंह के दीवानों का कहना है कि ‘हम युवा पीढ़ी के दिलों में भगत सिंह को जिंदा रखना चाहते हैं। लाहौर ऐसी जगह है जहां भगत सिंह ने पढ़ाई की और फिर देश की आजादी के लिए फांसी पर झूल गए। यहां की आबो-हवा में उनकी रूह आज भी बस्ती है। उन्होंने नई पीढ़ी को अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना सिखाया।’

 

यहां का ब्रेडलॉफ हॉल हो या इस्लामिया कॉलेज, फव्वारा चौक हो या सेंट्रल जेल, भगत सिंह के चाहने वाले आज भी लबों पर भगत सिंह का फसाना लिए घूमते है। दीवानों का मानना है कि ‘भगत सिंह दिलेर और निडर युवा थे। अंग्रेजों की आंखों में आंखें डालकर बात करते थे। वे किसी देश, धर्म के नहीं, बल्कि पूरे उपमहाद्वीप के हीरो हैं।’

 

इतिहासकार इकबाल बताते हैं, ‘लाहौर क्रांतिकारी और सुधारवादी आंदोलनों का केंद्र रहा है। शहर के बीचों-बीच बना इस्लामिया काॅलेज स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा रहा।”

 

आपको बता दें कि इसी भगत सिंह ने ब्रिटिश अफसर जॉन सैंडर्स पर गोली चलाई थी। जिस सेंट्रल जेल में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दी गई थी, आज वहां शादमान चौक बन गया है जिसे भगत सिंह चौक भी कहा जाता है। भगत सिंह और उनके मित्रों ने कश्मीर बिल्डिंग परिसर के रूम नंबर 69 में शहर की पहली बम फैक्ट्री बनाई थी। बाद में यह बिल्डिंग होटल में तब्दील हो गई। 1988 में उस जगह शॉपिंग प्लाजा बना दिया गया।

 

जानकारों की माने तो भगत सिंह से जुड़ी किताबें-पत्र आज भी सुरक्षित है। आर्काइव विभाग में 1919 में भगत सिंह पर दर्ज एफआईआर, पोस्टमार्टम रिपोर्ट के कागजात व उनके लिखे पत्र हैं। एक पत्र है, जिसमें उन्होंने जेलर से मियांवली से लाहौर जेल भेजने की मांग की थी। यहां ‘बेजुबान दोस्त’, ‘गंगा दास डाकू’ जैसी कुछ किताबें भी हैं।

 

इन्हें वे जेल में अक्सर पढ़ा करते थे। आर्काइव डिपार्टमेंट के सचिव ताहिर यूसुफ कहते हैं, ‘भगत सिंह उनमें से हैं, जिनकी वजह से हम खुले आसमान में सांस ले रहे हैं। हमारा विभाग प्रदर्शनी लगाता है और उनसे उनसे जुड़े दस्तावेज दिखाए जाते हैं।’

 

हम कह सकते है कि आज भगत सिंह किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं है। भगत सिंह एक ऐसी सोच है जो पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों को गुलामी से लड़ने के लिए प्रेरित करती है। जब तक यह सोच हमारे समाज में जीवित रहेगी, हमारे लोग हर तरह की गुलामी के खिलाफ आवाज बुलंद करते रहेगें।

 

(प्रयागराज ब्यूरो चीफ S भारत24 न्यूज s.kumar)

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