“आज हम जो ये चैन की साँसे ले रहे हैं इस साँस लेने के पीछे हमारे पूर्वजों का बहुत बड़ा बलिदान काम कर गया हैं। 

रिपोर्ट S kumar pryagraj

 

(भाजपाइयों ने मनाया उधम सिंह जयंती)

@शहीद_ऊधम_सिंहजी शतशत_नमन

 

(अमर शहीद ऊधम सिंह कम्बोज जी की पुण्यतिथि)

 

“आज हम जो ये चैन की साँसे ले रहे हैं इस साँस लेने के पीछे हमारे पूर्वजों का बहुत बड़ा बलिदान काम कर गया हैं।

जो हम आज आजादी से जी रहे हैं।

 

#ऊधम_सिंह_कम्बोज_जी

आज में आपके सामने ऐसे हीं एक अमर शहीद क्रांतिकारी (बाबा ऊधम सिंह कम्बोज) की पुण्यतिथि पर उनके जीवन के बारे में बताने का प्रयास कर रहा हूँ|

 

​शहीद ऊधम सिंह कम्बोज का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गाँव के एक ‘जट्ट सिक्ख’ परिवार में हुआ था.,व मृत्यु 31 जुलाई 1940 को हुई||

सन 1901 में उधम सिंह की माता औंर 1907 में उनके पिता का निधन हो गया।

इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी।

उधमसिंह का बचपन का नाम

#शेर_सिंह औंर उनके भाई का नाम #मुक्ता_सिंह था जिन्हें अनाथालय में क्रमश: उधमसिंह औंर साधु सिंह के रूप में नए नाम मिले।

अनाथालय में उधमसिंह की जिन्दगी चल हीं रही थी कि 1917 में उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया।

वह पूरी तरह अनाथ हो गए। 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया औंर क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शमिल हो गए। उधमसिंह अनाथ हो गए थे, लेकिन इसके बावजूद वह विचलित नहीं हुए औंर देश की आजादी तथा #डायर को मारने की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए लगातार काम करते रहें।

उधमसिंह 13 अप्रैल, 1919 को घटित जालियाँवाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे।

 

राजनीतिक कारणों से जलियाँवाला बाग में मारे गए लोगों की सही संख्या कभी सामने नहीं आ पाई। इस घटना से वीरउधमसिंह तिलमिला गए औंर उन्होंने जलियाँवाला बाग की मिट्टी हाथों में लेकर #माइकल_ओडायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा लेली।

 

अपने मिशन को अंजाम देने के लिए उधम सिंह जी ने विभिन्न नामों से अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील औंर अमेरिका की यात्रा की।

सन् 1934 में उधम सिंह लंदन पहुँचे औंर वहाँ पर स्थित

#9एल्डरस्ट्रीट_कमर्शियल_रोड़ पर रहने लगे। वहाँ उन्होंने यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी औंर साथ में अपना मिशनपूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीद ली।

 

भारत का यह वीर क्रांतिकारी माइकल ओ डायर को ठिकाने लगाने के लिए उचित वक्त का इंतजार करने लगा।

उधम सिंह को अपने सैकड़ों भाई-बहनों की मौंत का बदला लेने का मौका 1940 में मिला। जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को #रायल_सेंट्रल_एशियनसोसायटी की लंदन के काक्सटन हॉल में बैंठक थी जहाँ माइकल ओ डायर भी वक्ताओं में से एक था।

उधम सिंह उस दिन समय से हीं बैंठक स्थल पर पहुँच गए।

 

अपनी रिवॉल्वर उन्होंने एक मोटी किताब में छिपा ली। इसके लिए उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में उस तरह से काट लिया था, जिससे डायर की जान लेने वाला हथियार आसानी से छिपाया जा सकें। बैंठक के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह ने माइकल ओ डायर पर गोलियाँ दाग दीं। दो गोलियाँ माइकल ओ डायर को लगीं जिससे उसकी तत्काल मौंत हो गई।

उधमसिंह ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर दुनिया को संदेश दिया कि अत्याचारियों को भारतीय वीर कभी बख्शा नहीं करते।

 

उधम सिंह ने वहाँ से भागने की कोशिश नहीं की औंर अपनी गिरफ्तारी दे दी। उन पर मुकदमा चला। अदालत में जब उनसे पूंछा गया कि वह डायर के अन्य साथियों को भी मार सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया…???

उधम सिंह ने जवाब दिया कि वहाँ पर कई महिलाएं भी थीं औंर भारतीय संस्कृति में महिलाओं पर हमला करना पाप हैं।

 

4 जून,1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया औंर ##31जुलाई1940 को उन्हें #पेंटनविले जेल में फाँसी देदी गई। (आज हीं के दिन) इस तरह यह क्रांतिकारी भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में अमर हो गया।

1974 में ब्रिटेन ने उनका अस्थि कलश भारत को सौंप दिया।

 

सरदार उधम सिंह के इस बदले की कहानी आंदोलनकारियों को प्रेरणा देती रही।

 

इसके बाद की तमाम घटनाओं को हम सभी जानते हैं। अंग्रेजों को 7 सालो के अंदर देश छोड़ना पड़ा औंर हमारा देश आजाद हो गया। उधम सिंह जीते जी भले आजाद भारत में साँसे ना ले सकें, पर करोड़ो हिन्दुस्तानियों के दिल में रहकर वो आजादी को जरूर महसूस कर रहे होंगे।

शत-शत नमन

s. Kumar prayagraj (S भारत)

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